Monday, 18 February 2013

Corporate Social Responsibility {CSR}

कॉर्पोरेट सोशल रिस्पोंसिबिलिटी

 

Power Comes with Responsibilities

अर्थात शक्ति हमेशा जिम्मेदारियों के साथ ही मिलती है


        वर्तमान समाज में व्यापारियों और उधोगपतियों को यह शक्ति पूंजी और धन के उत्तरोत्तर विस्तार के कौशल और उत्कृष्ठ प्रबंधन क्षमता के रूप में प्राप्त है, अतः हमारे समाज के प्रति भी उनका नैतिक दायित्व बढ़ जाता है। पूंजीपतियों का यह नैतिक दायित्व है की वे केवल धनार्जन में लिप्त न रहते हुए समाज के विकाश और सामाजिक बुराइयों को दूर करने में भि आपना सार्थक योगदान दें। समाज में व्याप्त असमानता, अशिक्षा, पर्यावरणीय ह्राष और विभिन्न कुरीतियों को दूर करने में इनकी भूमिका अपरिहार्य है। इतिहास साक्षी है की विश्व के अधिकांश सामाजिक सुधार आंदोलोनो में पूंजीपति वर्ग ने प्रमुख भूमिका निभाई है। विश्व का वर्तमान स्वरुप के निर्धारण में भी उनकी महती भूमिका है। उधोगपति वर्ग कि इन्ही दायित्वों का विधिक रूप है - CSR (व्यावसायिक जगत का सामाजिक उत्तरदायित्व)
        यहाँ यह अवश्य ध्यान रखना चाहिये की यह एक दायित्व है न की कोई बोझ, अतः इसे स्वयंसेवी भाव से उसे रूप में स्वीकारना चाहिए जैसा दायित्व एक पुत्र अपने पिता के प्रति निभाता है।


       भारत में 1990 के दशक से CSR को अपनाया गया। सार्वजनिक और निजी उध्यमों को उनके लाभ का 1-5% सामाजिक विकाश कार्यों में लगाने का प्रावधान किया गया। वर्तमान समय में कई सार्वजनिक और निजी उध्यम  CSR में जुड़े हुए हैं। परन्तु उनके अधिकांश कार्य धन के दान तक ही सीमित होकर रह गए है। पूंजीपति विभिन्न NGOs, ट्रस्ट्स आदि को धनापुर्ती कराके अपने दायित्यों का ईति श्री कर लेते है। सामाजिक जागरूकता के नाम पर किये गए खर्च भी अधारणीय / अनुत्पादक प्रवृत्त के हैं। इसका मूल कारण ये है की वो  अभी भी इस नैतिक कार्य को अपनी सम्पति के ह्राश के रूप में हे देखते है और येनकेन प्रकारेण CSR में लगाये गए धन से किसी न किसी रूप में लाभार्जन के मोह में ही फंसे हुए है।

पूंजीपति वर्ग का यह दृष्टिकोण भी आकरण नहीं है| आखिर जिस संपत्ति को उन्होंने आपने पुरुषार्थ से जुटाया है उसे किसे पराये को कैसे दे दिया जा सकता है? वो भी किसी ऐसे व्यक्ति को जिससे उसे न लाभ मिलना है न ही कोई यश या सम्मान। अपनी इसी शोच के कारण वे अपने इस परोपकार में यथासंभव अपना हित साधने की कोशिश करते है। परिणामस्वरुप उनकी पूंजी का निर्गमन तो होता है परन्तु इसका अधिकांश भाग सामाजिक उत्थान में न लगकर मध्यस्थ वर्ग में ही रह जाता है। पूंजीपति भी अपने भावी लाभ (NGOs द्वारा सहायता) की आकांक्षा में अतिअल्प हस्तक्षेप कर पते है और पूंजी का समुचित उपयोग बाधित होता है।

New Vision
          जिस प्रकार परिवार किसी व्यक्ति के विकास उसके में परिवार की महती भूमिका होती है ठीक उसी प्रकार किसी व्यवसाय या संगठन के विकास व विस्तार में उसके समाज की अहम भूमिका होती है| हमारी भारतीय हमें अपने संरक्षकों (माता, पिता, अभिभावक आदि) के प्रति आदर, कृतज्ञता एवं यथासंभव सहायता के आचरण की प्रेरणा देती है| यह उचित भी है, आखिर जिन्होंने हमारी अक्षमताओं को दूर करके हमें बुलन्दियों के शिखर पर पहुंचा दिया है उसके बदले यह तो तृण मात्र भी नहीं है| यह विचार सिर्फ व्यक्ति विशेष पर ही नहीं अपितु संगठनों पर भी लागु होता है| जिस समाज में उन्होंने समृधि हासिल की है उस समाज के लिए उनका कुछ दायित्व भी है| इस क्रम में कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं - 
  • प्रथमतः पूंजीपति वर्ग को CSR में लगी पूंजी को हानी की तरह देखने की मानसिकता से उपर उठना होगा|
  • स्वयं को सिर्फ पूंजी/धन तक ही सिमित करने के बजाय उधोगों में एक CSR Unit की रचना करनि चाहिए| छोटी कम्पनीयों को संयुक्तरूप में ऐसी इकाईयों का निर्माण करना चाहिए| ऐसी इकाईया धन के प्रवाह को निर्देशित करने के साथ साथ पूंजी के नियोजन में अतिकुशल निर्देशकों (Directors,CEOs etc) के मार्गदर्शन को भी सूनिश्चित करेंगे| जिससे निर्गत धन का पूर्ण सार्थक उपयोग हो सकेगा|
  • इस धन का प्रयोग विकास की धरा से छुटे हुए अविकषित क्षेत्रों के विकास के लिए किया जाना चाहेए| शहरो में स्थापित कम्पनीज़ को 2-4 माह के रोटेशन पर कर्मचारियों को एक प्रोजेक्ट के रूप में इस कार्य का संपादन करवाना चाहेये तथा कार्य का स्वयं निरिक्षण करना चाहेए|
  • विभिन्न संस्थाओं द्वारा कराये गए निर्माण का नामाकरण भि उनकी इच्छानुसार ही होना चाहेए तथा संस्थाओं को इन कार्यों का विवरण आपनी website आदि पर भी प्रचारित करना चाहेये|
  • CSR के क्षेत्र में सिर्फ उधोगपति हि नहीं वरन अन्य धनाढ्य व्यक्तियों / संस्थाओं यथा –  पैत्रिक पूंजीपति, ज़मीदार, अभिनेता, क्रिकेट सितारे, अतिसंपन्न कृषक, व्यापारी, बड़े मन्दिर, राजनैतिक दल, मीडिया, प्रेस इत्यादि को भी सामिल किया जाना चाहेए|
  • CSR के कार्यों का निरिक्षण सोशल ऑडिट के माध्यम से करने का प्रावधान होना चाहेये तथा इसके लिए आवश्यकतानुसार प्रशासनिक सहायता भी प्रदान किया जाना चाहेए|
  • सरकार को भि विधिक परिवर्तनों द्वारा इनका सहयोग करना चाहेए, यथा – स्कूलों की मान्यता, नामाकरण आदि को सरल बनाना, CSR में कार्यरत लोगो को कुछ सुविधायें उपलब्ध करना, CSR के कार्यों के प्रचार की छूट देना तथा CSR की उपलब्धियों को एक पैमाने के रूप में स्थापित करना (सरकारी टेंडरों में CSR को आवश्यक करना)|

Advantages to Peoples
इसका प्रत्यक्ष लाभ पिछड़े हुए आमआदमी को मिलेगा| इन कार्यों के प्रसार से पिछड़े इलाको में रोजगार का सृजन होगा और उनके पास भी धन की पहुँच बढ़ेगी| गरीबी व बेरोजगारी में कामी आएगी और जीवन स्तर सुधेरेगा| स्कूलों के निर्माण से शिक्षा तक पहुँच बनेगी साथ ही निजी प्रशासन होने के कारन इनमे शिक्षा का स्तर भी अच्छा रहेगा| तालाब आदि के निर्माण से पर्यावरण की सुरक्षा मुमकिन होगी|
 
Advantages to the Government
सामाजिक विकास के कार्यों को निजी संस्थाओं द्वारा किये जाने के कारण सरकार का बोझ घटेगा और वो आधारभूत संरचना के विकास, रक्षा, प्रतिरक्षा तथा अनुसन्धान जैसे कार्यों पर ध्यान दे पायेगी| CSR के संचालन के बाद सरकार को मनरेगा, सर्व शिक्षा अभियान, रोजगार गारंटी आदि कार्यों से रहत मिलेगी और वो राष्ट्र निर्माण के पथ पर अग्रसर हो सकेगी| इन योजनाओं में रहत से जहाँ एक तरफ राजकोष में वृद्धि होगी वाही दूसरी तरफ इन योजनाओं में लगे प्रशासनिक तंत्र को भी विकास के कार्य में लगाया जा सकेगा|
 
Advantages to Corporate
उधोगपति वर्ग के CSR से दूर रहने का एक प्रमुख कारण ये है की उन्हें इसमें किसी लाभ का अभाश नहीं होता है| परन्तु अगर थोड़ी दूरदर्शिता से देखा जाय तो CSR में इनका भी लाभ निहित है| दीर्घकल में देखें तो CSR में लगाया गया धन अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाएगा जिससे उत्पादों की खपत बढ़ेगी| इसके साथ ही वे आपने इन कर्यों का उपयोग advertisement के रूप में भी कर सकते है जिससे उनकी advertisement के अन्य खर्च कम होंगे और CSR में खर्च किये गए धन की भरपाई भी मुमकिन होगी| भारत एक लोकतांत्रिक देश है साथ ही ये एक वैश्विक बाजार भी है आतः यहाँ जनाधार की महत्वपूर्ण भूमिका है| CSR के कार्य निश्चित रूप से संस्थाओं के जनाधार को बढ़ने में सहायक सिद्ध होंगे और संस्थाओं के विकास में सहायत प्रदान करेंगे|

Social Advantage
CSR से व्यैक्तिक लाभ के साथ साथ अनेक सामाजिक लाभ भी है| Social Audit के माध्यम से जनसाधारण का जुडाव प्रशासन से होगा जिससे उसमे आत्मसम्मान और गरिमा का भाव आयेगा और वो आपने आधिकारों व कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनेगा| उसे भी राष्ट्र निर्माण में आपनी भूमिका का बोध होगा| इस प्रकार कुंठायें शान्त होंगी और अलगाववादी भावनाओं तथा माओवादी, नक्सलवादी आदि गतिविधियों में भी कामे आएगी|
जब साधारण व्यक्ति की प्रशासन में भागीदारी से उनकी समस्याओं का निराकरण भी बेहतर ढंग से तथा कम समय में हो सकेगा| इसके साथ ही उनकी जागरूकता से भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा| विकास व उन्नति के वातावरण में राष्ट्रप्रेम का भी प्रसार होगा और व्यक्ति में नैतिक मूल्यों  का विकास होगा| नैतिकता का प्रसार निःसंदेह अपराधिक प्रवृतियों को कम करने में सहायक सिद्ध होगा| इस प्रकार हम द्रुत गति से विकास के पथ पर बढ़ते हुए विकसित राष्ट्रों मे समिल हो जायेगे और पर्यावरण के साथ विकास के कारण हमारा विकास स्थायी रहेगा|
 
Global advantage
राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर भी CSR के लाभ नज़र आते है| नैतिकता ह्राष एवं बढ़ती अपराधिक मानसिकता वर्तमान की प्रमुख समस्याओं में है| इसके प्रमुख कारणों में सामाजिक विषमता व उपेक्षा की भावना सामिल है| CSR के माध्यम से विषमता की खाई को कम करने तथा उपेक्षित वर्ग को सन्तुष्ट करने का प्रयत्न किया जा सकता है| विकास समस्याओं जैसे – बेरोजगारी, आशिक्षा, निम्न जीवन स्तर, पर्यावरण सुरक्षा आदि पर भी नियंत्रण करने में CSR का योगदान मिल सकता है|

अभी तक बताये सभी उद्शेयों की प्राप्ति CSR के द्वारा संभव है| तथापि इसके क्रियांवयन में कुछ अवरोध आने की भी सम्भावनाये है, जैसे –
  • एक प्रमुख समस्या सोशल ऑडिट के सन्दर्भ में मह्शूस की जा सकती है क्योंकि ऑडिट करने वालों के पास क़ानूनी अधिकार नहीं होगा| इस विषय में सरकार द्वारा एक शिकायत निवारण निकाय बनाना चाहिए तथा आवश्यकतानुसार ऑडिट करने वालो को प्रशासनिक व पुलिस सुविधा उपलब्ध कराने का प्रावधान करना चाहियें|
  • कुछ कानूनों में भी सुधर की जरुरत पड़ सकती है जिससे संस्थाये CSR में बढ़ चढ़ के सहभाग कर सके|


No comments:

Post a Comment